सरकारी नौकरी के लिए बनाए फर्जी जाति प्रमाण:ब्राह्मण पुलिसवाले ने ओबीसी बनकर की 40 साल सर्विस, मुड़ा जाति वाले हो गए आदिवासी

 


सरकारी नौकरी के लिए बनाए फर्जी जाति प्रमाण:ब्राह्मण पुलिसवाले ने ओबीसी बनकर की 40 साल सर्विस, मुड़ा जाति वाले हो गए आदिवासी

मूलनिवासी पर दूश्मन द्वारा  अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर, दिखावा, अतार्किक, अवैज्ञानिक, काल्पनिक थोपी व्यवस्था  से मुक्त किए बिना या इसको खत्म किए बिना दूश्मन की गैर बराबरी की व्यवस्था खत्म कर सकते? "

समाचार चैनलों पर भरोसा न करें। देशभक्ति के खिलाफ अत्यधिक झूठ चल रहे हैं .

 


समाचार चैनलों पर भरोसा न करें। देशभक्ति के खिलाफ अत्यधिक झूठ चल रहे हैं ...


बीच में गाजा बम विस्फोट के दृश्य को दिखाते हुए, वे पाकिस्तान में सियालकोट राज्य को भारत के राज्य के रूप में दिखा कर लोगों को उल्लू बना रहे हैं ...


यह दृश्य, जो विमान था, जो 3 जनवरी को फिलाडेल्फी में ढह गया था, 'इंस विक्रांत को कराची के बंदरगाह को नष्ट कर रहा है ... उसने फेसबुक पर एक नकली खाते का एक स्क्रीनशॉट रखा है जो भारतीय सेना सोशल मीडिया पर जनता दे रही है। यह घृणित बेहोशी संगठन के कारवां में बापसादों से आया है।


तेल टैंकर को 7 अप्रैल को बलूचिस्तान में विस्फोट कर दिया गया था ... वीडियो लोग हैं, जो भारत के लोगों को 'पाकिस्तान पर ड्रोन हमले' के रूप में दिखाते हैं।


बेशर्मता का चरमोत्कर्ष मीडिया द्वारा किया जाता है। उस से, भक्तों को भक्तों द्वारा व्यवस्थित किया गया है। सभी भक्त, पीट वापस, मस्तिष्क में एक चीज रखें:

पूरा देश 'भारतीय सैनिकों' के पीछे है, आपकी पार्टी या नेता का नहीं! हमारे नायक हमारे नायक हैं जो सीमा पर 'जान जान खटली पे' से लड़ रहे हैं ... जोकर, जो प्रतियोगिता में एक फैंसी ड्रेस है, एक प्रकाश संश्लेषक है, हमारी लिखित शून्य मूल्य है ... इसलिए नकली समाचारों को फैलाएं नहीं।


हमारी भारतीय सेना ने अपना काम किया। 

... कुरुलकारा की किशोरावस्था, जो पाकिस्तान को उनकी गुप्त जानकारी देती है, को देशभक्ति सिखाने की आवश्यकता नहीं है!


Jayhind 🙏

- किरण नेक।

शर्म तो मूलनिवासी को आने की जरूरत है। चार हजार वर्षों से जुल्म थोपे , मूलनिवासी ने भोगे, सहे, झेले। उस से कोई सबक नहीं लिया। बीजेपी कांग्रेस को अलग माना।

 


 शर्म तो मूलनिवासी को आने की जरूरत है। चार हजार वर्षों से  जुल्म थोपे , मूलनिवासी ने भोगे, सहे, झेले। उस से कोई सबक नहीं लिया। बीजेपी कांग्रेस को अलग माना। अलटा पलटा करते रहे। अब इवीएम थोप कर खुंटा गाड़ दिया ब्राहमण वादी सत्ता का। अब उखाड़ना कठीन पड़ रहा। फिर मूलनिवासी ब्राहमण वादी व्यवस्था  मान कर मजबूत करते जा रहे। इसलिए मूलनिवासी को शर्म मेहसूस करने की जरूरत है। बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञा 100% व्यवहार में मानते हैं तो ब्राहमणवाद जल्दी कमजोर होगा। कमजोर को पराजित करना आसान है। बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञा तथागत बुद्ध की विचारधारा, सिद्धांत का सार है। 


नायक हमेशा दुश्मनो से बॉर्डर पर लड़ते हैं 

और नालायक माफ़ीवीर की औलादें हमेशा अपनों से देश में ही लड़ते हैं...! 

अब तो यही करेंगे नालायक माफ़ीवीर की औलादें बॉर्डर पर लड़ने वाले नायक गायब और गद्दी पर बैठने वाले बैनर में चिपके है प्रचार के लिए

यह सेना का मनोबल कम और भक्तों का मनोबल बढ़ा नहीं रहे तो और क्या कर रहे है


मूलनिवासी चार हजार वर्षों से ,  विदेशी युरेशियन का  गैर बराबरी का जुल्म  झेलने, भोगने, सहने , पिछड़े पन  का कारण  अनुशासन हीनता का सामूहिक चरित्र रहा ? अनुशासन शील और अनुशासनहीन के कारण का केंद्र मनुष्य शरीर में कहां पर है? 1950 के बाद  दुश्मन द्वारा थोपी ग ई  सामाजिक कुरीतियां, विषमताएं,  मनवाने के लिए दुश्मन डंडा लेकर घर नहीं आ रहे कि चलो हमारी व्यवस्था को मानो। मूलनिवासी खुद ही दुश्मन की थोपी व्यवस्था  को मान कर दुश्मन को मजबूत कर रहे। मूलनिवासी खुद दुश्मन की व्यवस्था मान कर दुश्मन को मजबूत कर रहे  तो दुश्मन को कमजोर करने का , मूलनिवासी संगठन में क्या तरीका है, क्या उपाय है, क्या रणनीति है? यह स्पष्ट नहीं है । दुश्मन द्वारा , मूलनिवासी पर थोपी व्यवस्था को बदलने के लिए कार्यकर्ता, पदाधिकारी में बदलाव लाने की बजाय , खुद ही  उस व्यवस्था में शामिल कर , थोपी व्यवस्था को मजबूत कर रहे। अनुसरण, अनुकरण कैसे हैगा? पदप्रभारी ही थोपी व्यवस्था में शामिल करते तो आदर्श, प्रेरणा समाज को कैसे मिलेगा?

मरे जानवर का मांस खाकर जीने से मरना बेहतर है!

मूलनिवासी, पदप्रभारी , कार्यकर्ता दुश्मन की थोपी व्यवस्था  को मानकर दुश्मन को मजबूत करना शान समझते तो इसे छोड़कर कर जिंदा कैसे रहेंगे? यह सवाल कटु है। मूलनिवासी संगठन में जो कार्यकर्ता से लगा कर शीर्ष तक के पदप्रभारी हैं, वे दुश्मन की थोपी व्यवस्था को मान कर दुश्मन को मजबूत करना बेहतर समझते हैं तो मूलनिवासी संगठन दूश्मन की कौनसी व्यवस्था बदलने के लिए आंदोलन चला रहे? इसका जवाब अनुत्तरीय है। 

मूलनिवासी संगठन कीचड़ में रह कर कीचड़ साफ करने में सभी गैर राजनीतिक जड़े व्यर्थ जाया की और की जा रही। दुश्मन की थोपी व्यवस्था को कमजोर, खत्म करने के लिए , मूलनिवासी संगठन में इस प्रकार का कोई भी कार्यक्रम चलाते दृष्टिगोचर नहीं है। 

दुश्मन की व्यवस्था को कमजोर खत्म किए बिना दुश्मन को कमजोर नहीं कर सकते। यह बात मूलनिवासी संगठन मंच से कहा जाता भीतर पालन नहीं। तो अनुशासन कहां  ? अनुशासन सभी पर पर लागू पालन हो तभी अनुशासन का कहने का मूल्य है। कहे , वो ही , न माने तो व्यापक कैसे संभव? चरित्र का विकास नहीं। चरित्र तो पहले से निर्धारित है वो है पंचशील का पालन। इसमें विकास नहीं , व्यवहार में पालन जरूरी। तथागत बुद्ध , बाबा साहब ने पालन किया पूरा प्रभाव परिणाम दिखा। अब अनुशासन कहने भर के लिए रह गया , व्यवहार में पालन दूर दूर तक दृष्टिगोचर नहीं। मूलनिवासी संगठन के मंच से,  तथागत बुद्ध, बाबा साहब के जीवन चरित्र, समझ, त्याग , संघर्ष की बातें , बात को प्रभावी बनाने के लिए कही जाती भीतर व्यवहार में पालन दृष्टिगोचर नहीं। मूलनिवासी संगठन में निष्पक्षता जरूरी।

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले अज्ञानता में नास्तिक ही होते है

 




*🔥 हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले अज्ञानता में नास्तिक ही होते है🔥* 

      कुछ दिन पहले, मैं अपने एक पुराने मित्र,  सेवानिवृत सीनियर क्लास वन अधिकारी से उनके घर पर विमारी हालत में उनसे मिलने गया। बहुत सारे देवी-देवताओं और भगवानो का एक पूरी दिवाल पर सजा हुआ  जमावड़ा देखकर तथा उनकी दुखभरी जिन्दगी महसूस कर, बातचीत के दौरान, अनायास ही मेरे मुह से निकल गया कि, 

  *आप जिन्दगी भर नास्तिक ही रह गए, कभी कभार सही भगवान् को भी एक आध छण  के लिए याद कर लिया करो, हो सकता है कुछ अच्छे दिन लौट आए।* 

    मेरा दोस्त मुझे जानता था कि मैं  तथाकथित हिन्दू भगवानों में आस्था और विश्वास नही रखता हूं। आश्चर्य से यह तुम कह रहे हो! अरे मैं तो बचपन से लेकर आजतक, दुर्गा जी का भक्त रहा हूं।, पूरी लगन से पूजा -पाठ करते आ रहा हूं और मुझे, तुम नास्तिक कह रहे हो! 

  *हां, मै सही कह रहा हूं।* 

  *आप को किसने कहा कि दुर्गा जी चमत्कारी देवी और पालनहार है? अभी तक तो उनके परिवार खानदान का पता नहीं चला है, यहां तक कि उनकी पैदाइशी पर भी प्रश्न उठ रहे हैं? क्या आप ने विश्व के किसी महान दार्शनिक, वैज्ञानिक,  धार्मिक या भारत के महान विचारक, विद्वान बाबा साहब के मुंख से कभी सुना है कि दुर्गा जी एक शाक्षात पालनहार देवी है?* 

    नहीं, कभी नही सुना। फिर किससे सुना? उत्तर था, बचपन में गांव के पंडित जी से।

    *मान लीजिए आप को भूख लगी है और किसी नें कह दिया कि,  जाओ उस मकान के बाथरूम में खाना रखा हुआ है, लेकर खा लेना। आप वहां गए और बाथरूम में खाना ढूंढने में लग गए। निराशा हुई। आप को  किसी चालाक धोखेबाज नें कह दिया और बिना  सोचे-समझे, अंधभक्ति में आप नें मान लिया कि बाथरूम में खाना मिलेगा? तर्क तो आप को करना ही पडे़गा, बुद्धि तो लगानी ही पड़ेगी, कि खाना बाथरूम में कैसे मिलेगा? पहले तो कहने वाले के विश्वास को आप को तोड़ना पड़ेगा और फिर किचेन में अपनी बुद्धि से खाना ढूंढना पड़ेगा, तभी आप की भूख मिटेगी। अन्यथा भूखे पेट रह जाओगे।* 

      ऐसे ही पहले भगवान् को पूरे विश्व के परिप्रेक्ष्य में जानिए, समझिए, परखिए, महसूस कीजिए, तभी मानिए । अन्यथा आप किसी भी पत्थर-फोटो की अज्ञानता में पूजा -पाठ करते आ रहे हैं, तो आप सही मायने में नास्तिक ही हुए।

    *माफी चाहता हूं, सिर्फ आप ही नही, 98% हिन्दू अनजाने में नास्तिक ही होता है। बिना जानकारी लिए किसी की भी, जैसे गोबर के गौरी -गणेश, पेड़ पौधे, नदी-नाले, पशु-पक्षी और इनकी फोटो मूर्ति आदि तैंतीस करोड़ देवी -देवताओं की पूजा-पाठ करता रहता है, किसी से भी मनचाहा फल और सन्तुष्टि न मिलने पर, एक दूसरे को जिन्दगी भर  बदलता रहता है। ऐसे ही जगह जगह भटकता और ढूंढता रहता है। मरते समय तक उसे कभी मिलता भी नहीं है। यदि आजतक किसी एक को भी पूजा-पाठ करने से भगवान मिला हो और उसे मनचाहा फल दिया हो तो, उनमें से किसी एक का भी नाम बताइए। उनसे मैं मिलना चाहूंगा*।

    उनका प्रश्न था? फिर भगवान् कौन है और कहा है? 

  *देखिए पूरे विश्व के महान विचारक, विद्वान, वैज्ञानिक और दार्शनिक लोगो नें किसी बस्तु ,पदार्थ या इन्सान के रूप में भगवान् के अस्तित्व को नकारा है।* 

     एक शक्ति, या ताकत जो प्रकृति या नेचर के रूप में है, जिससे पूरा ब्रह्मांड संचालित होता है। पृथ्वी और चंद्रमा द्वारा सूर्य की परिक्रमा में, यदि  एक माइक्रो सेकंड का भी संतुलन बिगड़ जाए तो, पृथ्वी पर कोई जीव जन्तु, यहां तक की तथाकथित आप के भगवान् भी नही बचेंगे। उनकी परिक्रमा के कारण ही हमें दिन - रात, सभी तरह के मौसम, प्रकाश , हवा-पानी  आदि मिलता रहता है। वही प्राक्रतिक शक्ति सभी तरह के जीव-जंतु बनस्पति और प्राणी जाती के जीवन का आधार है। इसी शक्ति को गाड, अल्लाह ईश्वर या भगवान् के रूप में पूरे विश्व में माना गया है।

  *यही नहीं, यह भी ध्यान रखिए कि आजकल के सीसीटीवी कैमरे की तरह , वह शक्ति आप के हर अच्छे -बुरे, कर्मो  की हर समय निगरानी रखती है और आप के अच्छे -बुरे कर्मो का परिणाम भी आप को मिलता है।* 

     अब भाई साहब कुछ असमंजस में पड़ गए, मैंने उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि, भगवान् के बारे में कुछ और जानकारी लेना है तो, हमारी लिखी पुस्तक मानवीय चेतना जो अमाजोन पर आनलाइन उपलब्ध है।   "गाड, भगवान् और ईश्वर " पाठ का अध्ययन कर लीजिएगा।

  *खुशी की बात यह है कि कुछ दिनों बाद पता चला कि, उन्होंने दुर्गा जी  के साथ साथ सभी दिवाल पर सजे भगवानों को जल-प्रवाह कर  दिया और भगवान् नाम के भूत से मुक्त हो गए।* 

    उन्होंने मुझे शुक्रिया व आभार ब्यक्त भी किया।

गूगल@ *गर्व से कहो हम शूद्र हैं* 

  आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!

  गूगल@ *शूद्र शिवशंकर सिंह यादव* 

   *Meta AI  or GROK AI पर लेखक का नाम पूछकर, उनके या उनके मिशन के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। धन्यवाद*

फ्राँस ने भारत को राफेल का सोर्स कोड देने से इंकार किया है

 



पोस्ट थोड़ीसी लंबी है... जरूर पढ़े।

फ्राँस ने भारत को राफेल का सोर्स कोड देने से इंकार किया है🤣

और_ हम सोर्स कोड के बिना राफेल मे रूसी S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली लगाने में असमर्थ है_👇

"लवंड्येन् भोज्यम् हो गया है"सायरन बजेगा, तुरंत बत्ती बुझाओ — 2025 में 1965 की स्क्रिप्ट !

(गोबर ओर गौमूत्र सेवन को ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ खोज बताने वाले, गोबर पुत्रों की एक और चूतिया स्क्रिप्ट )

“सायरन बजेगा, बत्ती बुझाओ!”

हाँ जी, 2025 में सरकार ने एक और राष्ट्रवादी शो पेश किया है —

नाम है: ब्लैकआउट ड्रिल—मिशन अंधेरा 

युद्ध की तैयारी के नाम पर

जनता से कहा जा रहा है:

“बिजली बंद करो, दुश्मन को चकमा दो!”

अब सवाल ये है —

क्या सच में अंधेरा लाइट से लड़ाकू विमान या मिसाइलें निशाना चूक जाती हैं?

थोड़ा इतिहास में झाँकते हैं…

1939 से 1945 तक जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था —

तब वाकई ब्लैकआउट एक गंभीर रणनीति थी।

शहरों की बत्तियाँ बुझाई जाती थीं ताकि

दुश्मन के विमान ऊपर से देख न सकें

कि कहाँ बम गिराना है।

1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी

ब्लैकआउट अपनाया गया था —

क्योंकि उस वक़्त न तो उपग्रह थे, न ही जीपीएस।

विमान पायलट अपनी आँखों से

शहर की पहचान करते थे —

तो अंधेरा जान बचाने में मदद करता था।

लेकिन अब 2025 में?

अब दुश्मन की मिसाइलें कहती हैं:

“हमें रोशनी नहीं चाहिए, लोकेशन चाहिए!”

और वो लोकेशन तो आपके

मोबाइल फोन, स्मार्ट टीवी,

इंटरनेट राउटर, यहाँ तक कि

आपके कॉलोनी में लगे मोबाइल टॉवर दे रहे हैं।

आज के मिसाइल और जेट विमान होते हैं —

• GPS-guided

• satellite-tracked

• infrared-seeking

• AI-enabled

• terrain-mapping ready

यानि अब हमला कुछ यूँ होता है:

“लोकेशन मिल गई? बस, बटन दबाओ!”

लाइट जल रही है या बंद है —

हमले पर कोई असर नहीं पड़ता।

तो फिर ये ‘सायरन-बत्ती ड्रामा’ क्यों?

सरकार कहती है:

“मॉक ड्रिल है, नागरिक अभ्यास है…”

लेकिन दरअसल, यह युद्धोन्माद की रिहर्सल है।

जैसे कोरोना काल में ताली-थाली से वायरस को भगाया गया,

दीयों से महामारी को भस्म किया गया —

अब सायरन और ब्लैकआउट से

मिसाइलों और ड्रोन को चकमा दिया जा रहा है!

ये एक नया इमोशनल ड्रामा है —

थाली-ताली, दिया-मोमबत्ती के बाद

अब अंधेरे में अंधराष्ट्रवाद का पारा चढ़ाने की तैयारी!

असल उद्देश्य क्या है?

• लोगों में डर फैलाओ

• युद्धोन्माद को तेज करो

• युद्ध का माहौल बनाकर अंध-राष्ट्रवाद के इंजेक्शन लगाओ

• ताकि कोई पूछे ही नहीं —

बेरोज़गारी क्यों है?

•पेट्रोल-डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे हैं?

अडानी-अंबानी को सब कुछ क्यों सौंपा जा रहा है?

अभी यह प्रयोग सीमित क्षेत्रों में किया जा रहा है, रिस्पॉन्स देखते हुए इसे पूरे देश में फैलाने की पूरी संभावना है, और फिर टॉस्क दिये जाने पर अगर किसने बत्ती नहीं बुझाई —

तो क्या होगा?

संघी पड़ोसी बोलेगा: “ये देशद्रोही है!”

अंधभक्त चाचा कहेंगे: “इसने राष्ट्र का अपमान किया है!”

और फिर अगली सुबह

आपकी तस्वीर तिरंगे के नीचे वायरल हो सकती है:

“ब्लैकआउट के दौरान देशद्रोही पकड़ा गया!”

खैर, जब देश का प्रधानमंत्री एक नॉन-बायोलॉजिकल अजूबा हो, तो ऐसे हास्यास्पद ड्रामे हर सप्ताह संभव हैं।

याद है वो दिन?

जब प्रधानमंत्री जी ने कहा था:

“बादल थे, तो हमने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक कर दी —

क्योंकि मैंने दिमाग़ लगाया, बादलों की वजह से दुश्मन का रडार काम नहीं करेगा !”

पीएम के इस ‘बादल बनाम रडार’ सिद्धांत पर

पूरा देश-दुनिया अपनी हँसी नहीं रोक पाये—

इसरो चुप, डीआरडीओ मौन,

मौसम विभाग शर्मिंदा,

पर भक्त तब भी बोले:

“देखो! ये है देसी वैज्ञानिक सोच! मोदी का मास्टरस्ट्रोक ”

अब 2025 में फिर वही स्क्रिप्ट —

थोड़ा नया मेकअप, वही पुराना ढकोसला।

सायरन बजेगा,

बत्ती बुझाओगे,

दुश्मन को चकमा दे दोगे!

सच तो ये है:

असल जीत बत्ती बुझाने से नहीं,

दिमाग की बत्ती जलाने से हासिल होगी।

तो अगली बार जब सायरन बजे - 

तो बत्ती बंद करने से पहले

थोड़ा सोच भी चालू कर लीजिए।

कहीं ऐसा न हो कि

अंधेरा सिर्फ कमरे में ना हो,

बल्कि दिमाग़ में,

समाज में,

और लोकतंत्र में भी फैल चुका हो ।

50/60 साल पहले की जंग में सायरन बजते थे, घरों की बत्तियां बुझा दी जाती थीं, स्ट्रीट लाइट भी यहां तक कि घर के अंदर भी टॉर्च जलाने की मनाही थी. 

जब भारत पाकिस्तान का 1971 में युद्ध हुआ था तो लोगों ने घरों की खिड़कियों के शीशों पर अखबार चिपका दिए थे कि रौशनी बाहर न निकले. 

ब्लैक आउट इसलिए हो रहा था कि पाकिस्तानी जहाजों को शहर न दिख जाए और वो बमबारी न कर दें.

रिक्शों में लाउडस्पीकर लगाकर अनाउंस किया जाता था.

रेडियो से भी एनाउंस किया जाता था.

अब हम 21वीं सदी में हैं. जहाज रोशनी देखकर नहीं कॉर्डिनेट्स से टार्गेट पर बम गिराते हैं. 

जहाज और पायलट दोनों के पास नाइट विज़न इक्विपमेंट होते हैं. 

गूगल मैप ने दुनिया के हर कोने के कॉर्डिनेट बता दिए हैं. 

दुनियां के हर देश को एक दूसरे के बारे में सब कुछ पता है.

अमेरिकी ड्रोन के पायलटों ने 10 हजार किमी दूर अमेरिका में बैठ कर कंप्यूटर स्क्रीन देख कर अफगानिस्तान में बमबारी की थी.

लेज़र गाइडेड प्रिसिशन बॉम्बिंग के जमाने में इस तरह की नौटंकी की जा रही है।

भांड मीडिया पहले से ही झूठी और उत्तेजक खबरें फैलाकर मोदी को योद्धा बता रहे है।

अब खुद तमाशा गुरु  ने युद्ध जैसे संवेदनशील और रणनीतिक मुद्दे को इवेंट बना दिया है.

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भारत: स्थायी ग़ुलामों का साम्राज्य – ब्राह्मणवाद और शूद्रों की अधीनता पर एक चिंतन



भारत: स्थायी ग़ुलामों का साम्राज्य – ब्राह्मणवाद और शूद्रों की अधीनता पर एक चिंतन

भारत, जिसे अक्सर “लोकतंत्र की जननी” और प्राचीन ज्ञान की भूमि के रूप में महिमामंडित किया जाता है, अपने सांस्कृतिक ताने-बाने में सामाजिक दासता की एक क्रूर और अटूट विरासत को छिपाए हुए है – एक ऐसी व्यवस्था जो इतनी गहरी है कि इसने उत्पीड़न को परंपरा के रूप में सामान्य बना दिया है। इस व्यवस्था के मूल में ब्राह्मणवाद है, न केवल एक धार्मिक पहचान, बल्कि श्रेणीबद्ध असमानता की एक गहरी राजनीतिक संरचना। इस नज़रिए से, भारत स्थायी दासों का साम्राज्य बन जाता है – एक ऐसी सभ्यता जहाँ बहुसंख्यक, विशेष रूप से शूद्र, अनुष्ठान, शास्त्र और रीति-रिवाजों की ज़ंजीरों में बंधे रहते हैं।

वर्ण पदानुक्रम के नज़रिए से ऐतिहासिक रूप से गढ़ा गया “शूद्र” शब्द न केवल श्रम की एक श्रेणी को दर्शाता है, बल्कि दासता की स्थिति को भी दर्शाता है – जिसे सम्मान, शिक्षा और स्वशासन से वंचित किया जाता है। यह इतिहास की एक दुर्घटना नहीं थी; यह एक योजना थी। ब्राह्मणवादी व्यवस्था की आधारशिला मनुस्मृति ने इस असमानता को दैवीय भाषा में संहिताबद्ध किया, ब्राह्मणों के प्रति आज्ञाकारिता और शूद्रों को अधिकारों से वंचित करना लौकिक सत्य के रूप में प्रस्तुत किया।

दुखद यह है कि सदियों से चले आ रहे जाति-विरोधी आंदोलनों, संवैधानिक गारंटी और सामाजिक सुधार के बाद भी ब्राह्मणवाद की भावना भारतीय संस्थाओं पर हावी है - मंदिरों से लेकर पाठ्यपुस्तकों तक, नौकरशाही से लेकर सिनेमा तक। शूद्र, संख्यात्मक रूप से प्रमुख होने के बावजूद राजनीतिक रूप से विखंडित, सामाजिक रूप से कलंकित और सांस्कृतिक रूप से सहयोजित बने हुए हैं। उन्हें केवल ब्राह्मणवादी ढाँचों द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही गतिशीलता की अनुमति है - उन्हें चढ़ने की अनुमति है लेकिन कभी भी सीढ़ी पर सवाल उठाने की नहीं।

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने हमें चेतावनी दी थी कि सामाजिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र खोखला है। जब तक ब्राह्मणवाद भारत की आत्मा बना रहेगा - इसकी नैतिकता को आकार देगा, इसके आख्यानों को नियंत्रित करेगा और इसकी असमानताओं को वैध बनाएगा - शूद्र और वास्तव में सभी बहुजन, एक ऐसे साम्राज्य में स्थायी रूप से गुलाम बने रहेंगे जो उनकी चुप्पी और अधीनता पर पनपता है।

सच्ची मुक्ति प्रतीकात्मक समावेश से नहीं बल्कि जाति के विनाश और ब्राह्मणवाद के वैचारिक पतन से आएगी। तब तक, भारत वही रहेगा जो हमेशा से रहा है - एक ऐसा साम्राज्य जहाँ बहुसंख्यक नागरिक नहीं, बल्कि प्रजा के रूप में रहते हैं।

देश में आतंकवाद फैलाने की साज़िश...

 


देश में आतंकवाद फैलाने की साज़िश...

पश्चिम बंगाल के एक रेलवे स्टेशन पर बने बाथरूम में पाकिस्तानी झंडा देखे जाने के बाद काफी सियासी बवाल मचा था. लेकिन अब पुलिस ने इस सिलसिले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है. असल में ये राज्य में सांप्रदायिक तनाव और नफरत फैलाने का एक प्रयास था. पुलिस ने सां@प्रदायिक अशां@Nति भ@ड़काने के आरोप में ये कार्रवाई की है.

इंडिया टुडे से जुड़े राजेश साहा की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने बताया कि इन आरोपियों ने स्टेशन के बाथरूम की एक दीवार पर पाकिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज चिपकाया था. यही नहीं, दोनों ने योजना बनाई थी कि वो दीवार पर 'हिंदुस्तान मुर्दाबाद और पाकिस्तान जिंदाबाद' भी लिखेंगे. पुलिस के मुताबिक दोनों आरोपी एक स्थानीय धार्मिक संगठन ‘सनातनी एकता मंच’ के सदस्य हैं. इनके नाम चंदन मलाकर और प्रोज्ञजीत मोंडल बताए गए हैं. source: The Lallantop

ब्राह्मण-मुस्लिम संबंध: इतिहास, सत्ता और राजनीति

 


ब्राह्मण-मुस्लिम संबंध: इतिहास, सत्ता और राजनीति 

क्या ब्राह्मणवाद की सत्ता संरचना का अंत संभव है?


भारत का इतिहास केवल युद्धों और विजयों का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, वैचारिक और सत्ता साझेदारियों का भी रहा है। ऐसे ही एक जटिल संबंध का विश्लेषण है—ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच का रिश्ता। आज जहाँ हिंदुत्व की राजनीति इस संबंध को टकराव और शत्रुता के रूप में चित्रित करती है, वहीं इतिहास के आईने में यह संबंध कहीं अधिक सहयोगात्मक और रणनीतिक रहा है। यह लेख इसी विरोधाभास की परतें खोलता है।


1. मध्यकालीन इतिहास: साझेदारी और सत्ता-संरचना


मुस्लिम शासनकाल, विशेषकर सुल्तनत और मुगल काल में, ब्राह्मण केवल एक धार्मिक वर्ग नहीं थे—वे प्रशासन, राजस्व व्यवस्था, शिक्षा और ज्योतिष जैसे क्षेत्रों में उच्च पदों पर कार्यरत थे।

• अकबर के नवरत्नों में ब्राह्मण मंत्री शामिल थे, जैसे टोडरमल।

• संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद ब्राह्मणों की भागीदारी से हुआ।

• फ्रांसिस बर्नियर, अबुल फज़ल और तैमूर की आत्मकथा जैसे दस्तावेज़ों में ब्राह्मणों को एक सहयोगी वर्ग के रूप में चित्रित किया गया है।


यह संबंध किसी धार्मिक सद्भावना का नहीं बल्कि सत्ता-प्रबंधन का हिस्सा था—जहाँ ब्राह्मणों ने शासकों को वैधता दी और बदले में विशेषाधिकार पाए।


2. सत्ता का धर्मनिरपेक्ष यथार्थ


ब्राह्मणों ने इतिहास में कभी भी एक मुसलमान शासक से इस आधार पर विरोध नहीं किया कि वह “म्लेच्छ” है। यदि सत्ता और संरक्षण मिल रहा हो, तो ब्राह्मणवाद ने धर्म से ऊपर सत्ता को वरीयता दी।

• हूण, शक, कुशान, और बाद में राजपूतों को भी ब्राह्मणों ने शुद्धिकरण के बाद क्षत्रिय घोषित किया।

• मुस्लिम शासक ईरानी-तुर्की मूल के थे, जो ब्राह्मणों के पश्चिमी स्रोतों (जैसे यहूदी, पारसी, यूनानी) से नज़दीकी दिखाते हैं।

• आबू पर्वत शुद्धिकरण सम्मेलन (8वीं सदी) ब्राह्मणवाद के सत्ता-व्यवस्थापक चेहरे का प्रमाण है।


3. वैचारिक टकराव: बौद्ध-इस्लाम बनाम ब्राह्मणवाद


ब्राह्मणों के लिए वास्तविक वैचारिक चुनौती कभी मुस्लिम शासन नहीं रहा—बल्कि बौद्ध धर्म और उसके समानता के मूल्य थे।

इस्लाम के आगमन से पहले ही भारत में बौद्ध धर्म ब्राह्मणवाद को चुनौती दे रहा था:

• बुद्ध ने जाति व्यवस्था और वेदों की सत्ता को खारिज किया।

• इस्लाम ने भी जातिविहीन समाज और एकेश्वरवाद को बढ़ावा दिया।


ब्राह्मणवाद ने इन दोनों धाराओं से सत्ता छीनी—एक को समूल नष्ट किया (बौद्ध धर्म) और दूसरे को “शत्रु” की छवि देकर राजनीतिक लाभ उठाया (इस्लाम)।


4. वर्तमान दौर: गढ़ी गई दुश्मनी और राजनीतिक प्रयोग


मोदी युग में ब्राह्मणवादी राजनीति ने मुसलमानों के खिलाफ जो नफरत फैलाई है, वह इतिहास के तथ्य नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति है।

• गौरक्षा, लव जिहाद, घर वापसी, और मंदिर-मस्जिद विवाद—ये सब ब्राह्मणवादी सत्ता के स्थायित्व के लिए तैयार “दुश्मनी के मंचन” हैं।

• टीवी मीडिया, सिनेमा और WhatsApp यूनिवर्स के ज़रिए मुस्लिमों को एक विलेन के रूप में प्रचारित किया गया है।

• इसका असली उद्देश्य: दलित, पिछड़े और मुसलमानों की संभावित एकता को तोड़ना।


5. निष्कर्ष: साझेदारी से शत्रुता तक


इतिहास हमें यह सिखाता है कि ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच शत्रुता कोई शाश्वत सत्य नहीं, बल्कि एक निर्मित मिथक है।

सच यह है:

• ब्राह्मण और मुस्लिम शासक राजनीतिक सहयोगी रहे हैं।

• ब्राह्मणवाद का विरोध उन विचारों से है जो समानता, वैज्ञानिकता और सामाजिक न्याय की बात करते हैं—जैसे बौद्ध धर्म, इस्लाम, और आज का बहुजन विमर्श।

• आज की नफ़रत राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता-संरचना की रक्षा के लिए तैयार की गई रणनीति है।


आगे की राह


यदि अनुसूचित, पिछड़े, मुसलमान और अन्य वंचित समुदाय इस ऐतिहासिक सच्चाई को समझें और आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ आएँ, तो ब्राह्मणवाद की हजारों वर्षों की सत्ता संरचना का अंत निश्चित है।

UPSC में अगड़ी जातियों का ओवर रिप्रजेंटेशन — सामाजिक न्याय के लिए जाति जनगणना जरूरी



UPSC में अगड़ी जातियों का ओवर रिप्रजेंटेशन — सामाजिक न्याय के लिए जाति जनगणना जरूरी


हाल ही में UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 का परिणाम घोषित हुआ, जिसमें कुल 1009 उम्मीदवारों का चयन हुआ है। यदि हम चयनित उम्मीदवारों का वर्गीकरण देखें:


General : 335 उम्मीदवार


OBC : 318 उम्मीदवार


SC : 160 उम्मीदवार


ST : 87 उम्मीदवार


EWS : 109 उम्मीदवार


यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर सामने आता है — General + EWS मिलाकर कुल 444 उम्मीदवार, यानी कुल चयन का 44%, अगड़ी जाति (Savarn) समुदाय से हैं।


जबकि देश की जनसंख्या संरचना कुछ इस प्रकार है:


सवर्ण (General) आबादी : लगभग 10%


OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) : लगभग 55%


SC (अनुसूचित जाति) : लगभग 24%


ST (अनुसूचित जनजाति) : लगभग 10%


स्पष्ट है, जिनकी जनसंख्या मात्र 10% है, वे देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में 44% सीटों पर कब्जा किए हुए हैं। यह केवल एक असमानता नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक अन्याय और सिस्टमेटिक स्कैम है, जो दशकों से चलता आ रहा है।


यह ओवर रिप्रजेंटेशन क्यों गंभीर मुद्दा नही है ?

नेहा सिंह राठौर का एक संक्षिप्त विमर्श:

 


नेहा सिंह राठौर का एक संक्षिप्त विमर्श: 


“कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ और पर्यटकों की हत्या कर दी गई। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। आप कहां सोए हैं, चौकीदार जी? आपकी चौकीदारी में कैसे चूक हो गई? आंख लग गई थी क्या? आपने तो नोटबंदी करके आतंकियों की कमर तोड़ दी थी। फिर यह कैसे हो गया? मतलब, फौजियों से कब तक देश चलेगा, महाराज? इस हमले के लिए भी नेहरू जी जिम्मेदार हैं क्या?


कोई पत्रकार आपसे सवाल नहीं पूछेगा। आप कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं करेंगे, और आप कोई जिम्मेदारी भी नहीं लेंगे। यह बात अभी से पूरा देश जानता है। लेकिन श्रीमान, मैं आपसे सवाल पूछूंगी। देश अब सच में जानना चाहता है कि इतना महंगा शेर पालने के बाद भी देशवासियों की हत्या कैसे हो गई?


आपकी 56 इंच की छाती और लाल आंखें किस काम की हैं? सर्जिकल स्ट्राइक क्या सच में एक कहानी थी? अनुच्छेद 370 पर बड़ी-बड़ी बातें किस काम की रहीं? पुलवामा हमले में जवान मारे गए, पहलगाम हमले में पर्यटकों की हत्या हो गई। बताइए, मोदी जी — क्या कश्मीर की शांति आतंकवादियों की मेहरबानी पर टिकी है?


जवाब दीजिए, मोदी जी! कब तक कश्मीर में शांति बहाली के नाम पर वोट बटोरने और देशवासियों की लाशें बटोरने का काम एक साथ होता रहेगा?


आपके प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश में लाखों लोग मारे जा चुके हैं — कभी ऑक्सीजन की कमी से, कभी वैक्सीन के रिएक्शन से, कभी पुल गिरने से, तो कभी रेल दुर्घटनाओं और भगदड़ों में कुचलकर। लाखों लोग अकाल मौत मारे गए। लेकिन आपने कभी कोई जिम्मेदारी नहीं ली।


आप देशवासियों की मौतों की जिम्मेदारी कब लेंगे? आप अपनी चूक कब स्वीकार करेंगे? क्या देशवासियों का जीवन आपकी गलतियों पर न्योछावर होने के लिए है?”


यह घटना सन 1932 की है। जब बाबा साहब अपने एक साथी वकील, गडकरी के साथ एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पुणे जा रहे थे।

 


यह घटना सन 1932 की है। जब बाबा साहब अपने एक साथी वकील, गडकरी के साथ एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पुणे जा रहे थे। वे पनवेल में रोड के किनारे एक चाय की दुकान देखकर चाय पीने के लिए रुके। गाड़ी में बैठे उनके साथी वकील, गडकरी ने आवाज दी, "भाई दो कप चाय भिजवाना। चाय अच्छी बनाना, गाड़ी में डा० अम्बेडकर बैठे हैं।"


चाय वाले की दुकान पर काम करने वाला एक लड़का जैसे ही दो गिलास पानी लेकर गाड़ी की तरफ जाने लगा, चाय वाले ने लडके के हाथ पर हाथ मारा और गिलास गिर कर टूर गए। फिर गुस्से में बोला, "बहुत पढ़-लिख गया, तो वामन थोड़े ही बन जायेगा। तुम लोगों को चाय तो क्या, पानी भी नहीं मिलेगा।"


वहीं खड़ा, पास के गाँव का एक मजदूर 'सोनबा' यह दृश्य देख रहा था। वह चिल्लाया, "मेरे बाबा को तुम पानी नहीं पिला सकते तो कोई बात नहीं, अपने बाबा को मैं पानी पिलाऊंगा।" यह कह कर सोनबा पानी लाने के लिए अपने गाँव की तरफ दौड़ गया।


बाबा साहब डा०अम्बेडकर का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उन्होंने कहा, "उफ़! इतनी छुआछूत! जातिवाद से भरी हुई घृणित मानसिकता! जातीय अहंकार ने मनुष्य को मनुष्य नहीं समझा।" उन्होंने गडकरी से आगे बढ़ने के लिए कहा।


थोड़ी देर बाद सोनबा पानी का भरा मटका लेकर वहां पहुंचा, लेकिन तब तक बाबा साहब वहां से जा चुके थे। वह बहुत निराश, हताश, दुखी हुआ। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। रोते-रोते, बस यही कह रहा था, "मेरे बाबा प्यासे रह गए, मैं उन्हें पानी नहीं पिला सका।" सोनबा घड़ा लेकर पूरी रात वहीँ एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, इस उम्मीद में कि, बाबा साहेब वापस जरूर आयेंगे और वह उन्हें पानी पिलाकर धन्य हो जायेगा।


 सोनबा के लिए वक्त जैसे वहीँ ठहर गया। अब सोनबा का यह नियम बन गया, वह हर रोज घड़े में भरकर पानी लाता, और उस पेड़ के नीचे बैठ जाता और रात होने पर वापस अपने घर लौट जाता। हर दिन वह बाबा साहेब के वापस आने की प्रतीक्षा करता। बाबा साहेब के वहां से होकर गुजरने का वह सात साल तक इंतज़ार करता रहा।  सोनबा, बस यही बड़बड़ाता रहता, "हाय! मेरे बाबा प्यासे चले गए, उन्हें बहुत प्यास लगी होगी, मैं उन्हें पानी जरूर पिलाऊँगा, मेरे बाबा एक दिन जरूर आएंगे".


कई वर्षों बाद जब बाबा साहब को एक मित्र से इस घटना की जानकारी मिली, तो वे सोनबा के बारे में सोच कर अत्यंत भावुक हो गए, और तुरंत ही अपने एक मित्र के साथ सोनबा के हाथ का पानी पीने के लिए निकल पड़े। जब बाबा साहब पनवेल नाके पर पहुंचे, तो वहां सोनबा तो नहीं मिला, लेकिन वहां पेड़ के नीचे एक टूटा हुआ घड़ा जरूर मिला। पूछने पर पता चला कि, कुछ दिन पहले,सोनबा अपनी अधूरी आस लिए चल बसा।


बाबा साहब का ह्रदय विह्वल हो उठा, आँखें डबडबा आईं। एक आदमी से कह कर कुछ फूल मंगाए और टूटे घड़े के टुकड़े एकत्र करके सोनबा को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उनके आंसुओं ने पलकों के बाँध तोड़ दिए। झर-झर बहते आंसुओं ने टूटे घड़े के टुकड़ों में समाए सोनबा को सराबोर कर दिया।


 बाबा साहब के मुख से निकली हुंकार में ये शब्द थे, "मेरे प्यारे सोनबा! तुम्हें मारने वाली और मेरे करोड़ों भाई-बहनों को कुत्ते-बिल्ली की तरह समझने वाली इस अंधी-बहरी व्यवस्था को मैं एक दिन अवश्य बदल डालूँगा। हे! सोनबा, तेरी इस अपार श्रद्धा ने मुझे हजार हाथियों का बल दिया है।"


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