🌻धम्म प्रभात🌻
हम चले बोधगया की ओर......................
महाबोधि महाविहार ( बोधगया) मुक्ति आन्दोलन में भाग लेने के लिए हम आज सुबह बोधगया की ओर प्रस्थान करते है।
जहां सिद्धार्थ गौतम ने सम्यक सम्बोधि पाईं उस पवित्र स्थान पर देवानांप्रिय सम्राट अशोक महान ने चैत्य का निर्माण करवाया था।
सम्राट अशोक ने बुद्धगया की पहली धम्म यात्रा कलिंग युद्ध के बाद आचार्य उपगुप्त के साथ अपने शासन के 10 वें वर्ष में की थी। देवानप्रिय प्रियदर्शी सम्राट ने अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ महाबोधि विहार के दर्शन किए थे। सम्राट ने यहां भव्य चैत्य, वेदिका, स्तूप आदि का निर्माण कराया।
बौद्ध ग्रंथों में यह ऐतिहासिक घटना वर्णित है। इस ऐतिहासिक स्थान को समय-समय पर विस्तृत किया गया और संरक्षित किया गया। इसा पूर्व तीसरी शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तब महाबोधि महाविहार बौद्धों के संरक्षण में रहा था। लेकिन सन् 1590 में घमंड गिरी नामक शैव संन्यासी ने क़ब्ज़ा कर लिया। वही शैव पंथी झगड़े की जड़ है। महाबोधि महाविहार को शैव मंदिर बनाने के लिए उनके द्वारा अनेक षडयंत्र रचा गया है- महाबोधि महाविहार में नकली शीवलिंग, पींडदान, पांच पांडव का मंदिर और बुद्ध को विष्णु का अवतार बताना आदि। भगवान गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार नहीं है,यह हकीकत शंकराचार्य को भी मानना पड़ा है। फिर भी घमंडी ब्राह्मणवाद इस सत्य को स्वीकार नहीं करते है, कारण है - दान में मिलती धन राशि, वे डकार लेते हैं और आगे भी जारी रखना चाहते हैं। उन ब्राह्मणों को बुद्ध और धम्म से कोई लेना-देना नहीं है।
ब्राह्मणों की जातिप्रथा को बुद्ध ने सम्यक सम्बोधि के पांचवें सप्ताह में नकारी थी - ब्राह्मण जन्म से नहीं, ब्राह्मण कर्म से होते है। बुद्ध का यह पहला प्रहार ब्राह्मणी विचारधारा के खिलाफ था।
सृष्टि करता ईश्वर है यह बात झूठी है ऐसा बुद्ध ने कहा। इसका प्रमाण उनको सम्यक सम्बोधि प्राप्त हुई तब उनके उदान पुष्टि करते है -
"अनेकजातिसंसारं,
सन्धाविस्सं अनिब्बिसं ।
गहकारकं गवेसन्तो,
दुक्खा जाति पुनप्पुनं ।।"
अर्थात :
बिना रूके अनेक जन्मों तक इस संसार में दौड़ता रहा । (इस काया रूपी) गृह को बनाने वाले को खोजते पुन: पुन: दु:ख- जन्म में पडता रहा ।
गहकारक ! दिट्ठोसि ,
पुन गेहं न काहसि ।
सब्बा ते फासुका भग्गा,
गहकूटं विसंङ्खितं ।
विसङ्खार गतं चित्तं,
तण्हानं खयमज्झगा ।
अर्थात :
हे गृहकारक ! ( घर बनानेवाले) ,
मैंने तुझे देख लिया,
(अब) फिर तू घर नहीं बना सकेगा ।
तेरी सभी कडियां भग्न हो गयीं,
गृह का शिखर गिर गया ।
चित्त संस्कार रहित हो गया ।
तृष्णाओं का क्षय हो गया हैं।
जन्म मरण का सिलसिला अपने भव संस्कार के कारण होता है, तृष्णा ही भवचक्र का संचालन करती है। तृष्णा का समुच्छेद हो गया तो भवचक्र रुक गया। बुद्ध ने यही बात उपरोक्त गाथा में कही है।
"इमस्मिं सति इदं होति,
इमस्मिं असति इदं न होति।"
अर्थात-
इस कारण के होने से यह परिणाम होगा।
इस कारण के नहीं होने से यह परिणाम नहीं होगा।
कौन से कारण?
चित्त पर तृष्णा जन्य विकार होंगे तो दु:ख होगा।
चित्त तृष्णा रहित होगा तो दु:ख अपने आप दूर हो जाएगा।
यह प्रकृति है, यही सनातन नियम है।
इतनी बड़ी खोज जहां हुईं, इस स्थान आज पाखंडीओं के द्वारा संचालित है। यह भारत देश के लिए शर्मिन्दी है। भारत सरकार उन पाखंडवाद को दूर करने में उदासीन है। लेकिन, बौद्ध समुदाय अपने अधिकार और स्वाभिमान के लिए जागे हैं। इसलिए, महाबोधि महाविहार (बोधगया) मुक्ति आन्दोलन चल रहा है। इस आंदोलन में भाग लेने के लिए हम चलें बोधगया, आप भी चलें।
नमो बुद्धाय🙏🙏🙏
रमेश बौद्ध बैंकर
मोबाइल: 9998733336