सवा सेर मिल जाता है तब ~ दूरी बहुत है और


*~~~सवा सेर मिल जाता है तब~~*

*~~~~दुम भी यही हिलाते हैं~~~~*



*भगदड़ कहाँ नहीं है इतनी, इस शासन के आने से।*

*समझो देख रहे हैं सारे, इसको एक जमाने से।*

भगदड़ मची नोट बन्दी में, कितने बेड़े पार हुये ?

अब कहते हैं मोक्ष मिली है, तब कहते अवतार हुये।

*इनकी नीति अजब बेढंगी, लोग समझ न पाते हैं।*

*सवा सेर मिल जाता है तब, दुम भी यही हिलाते हैं।*

आशाराम भजन करते थे, ये दरबारी जाते थे।

छद्म पुरुष बच्चों को ले कर के, गायब हो जाते थे।

*रँग भी खेले गये वहाँ पर, और भंग भी पी डाली।*

*भगदड़ मची वहाँ पर भी, तब नजर नहीं आयी नाली।*

इस भगदड़ ने असली रूप, दिखाया था कोरोना में।

पत्थर प्राण डालने वाले, गायब जादू टोना में।

*अच्छा हुआ लोग मर कर के, नहीं जलालत देख सके।*

*होने वाली और बुरी, भारत की हालत देख सके।*

महा कुम्भ का पीट ढिंढोरा,  नाप रहे थे पैमाने।

कितने लोग अभी अन्धे हैं, दुनिया भी इसको जाने।

*भगदड़ जैसी बात नहीं थी, पर ये तो होना ही था।*

*प्रायोजित थीं कई कलाएँ, कुछ को तो रोना ही था।*

वाहन सारे रोक दिये थे, जाम लगे लम्बे लम्बे।

सबकी पीड़ा हरने वाली, कहाँ गयी थी जगदम्बे ?

*कई करोड़ों का प्रचार कर, काफी नाम कमाया था।*

*जहाँ जगह थी बस लाखों की, बाकी कहाँ समाया था ?*

दलदल में फँस गये हजारों, उलझे गन्दे पानी में।

जाने कितने टूट गये थे, अपनी भरी जवानी में।

*दिल्ली की भगदड़ भी देखो, रेल खेल में चली गयी।*

*थी अनजान यहाँ की जनता, धोखे में ही छली गयी।*

नटवरलाल बेंच संसद को, गुम हो गया खजाने से।

फुर्सत नहीं मिलेगी इनको, खुद का रूप सजाने से।

*भगदड़ कहाँ नहीं है इतनी, इस शासन के आने से।*

*समझो देख रहे हैं सारे, इसको एक जमाने से।*


*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2500 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

*2-* कृपया कापी राइट का उल्लंघन न करें तथा रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।

*3-* यदि आप सोशल मीडिया पर प्रसारित पूर्व की रचनाओं को पढ़ना चाहते हैं तो कृपया आप *अनंग साहब* के फेसबुक मित्र बनकर *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं।

*4- सम्पर्क सूत्र~* 



*~~~~~दूरी बहुत है और~~~~~*

*~~~~अभी पास आइये~~~~*


*सीधी सपाट जिन्दगी में, कुछ मजा नहीं।*

*वो जिन्दगी है किसलिये, जिसमें सजा नहीं।*

बेबाक जिन्दगी से, ऊबते रहे हैं लोग।

ठहरे हुये पानी में, डूबते रहे हैं लोग।

*जो तैरना हैं सीखते, जल के बहाव में।*

*विचलित नहीं वे हो सके, सीने के घाव में।*

आ कर के तैश में भी, उभरना नहीं कभी।

कीमत लगाने वालों से, डरना नहीं कभी।

*ये आँख का दस्तूर है, आँसू बहायेगी।*

*बरसेगा झमाझम तो, जिन्दगी नहायेगी।*

हर बार उसी रास्ते, जाया नहीं करते।

गुजरे हुये हालात, भुलाया नहीं करते।

*हालात के आगे कहाँ, इंसान झुका है।*

*ये आँधियों का दौर भी, आ कर के रुका है।*

तैयारियाँ शूली पे, चढ़ाने के लिये हैं।

बातें जो चल रही हैं, बहाने के लिये हैं।

*बदले हुये हालात का, कुछ शोर नहीं है।*

*ऐसा नहीं समझना, कि वो मुँह जोर नहीं है।*

दिल की बढ़ी हैं धडकनें चेहरे का भाव है। 

तटबन्ध में होने लगा, फिर से रिसाव है।

*गफलत की जिन्दगी को, अभी भूल जाइये।*

*दूरी बहुत है और, अभी पास आइये।*

वे झूठ बोलते हैं, कोई बेबज़ा नहीं।

हमने बढ़ाये हाथ पर, उनकी रजा नहीं।

*सीधी सपाट जिन्दगी में, कुछ मजा नहीं।*

*वो जिन्दगी है किसलिये, जिसमें सजा नहीं।*

*मदन लाल अनंग*

द्वारा : मध्यम मार्ग समन्वय समिति।

*1-*  वैचारिक खोज बीन के आधार पर समसामयिक, तर्कसंगत और अकाट्य लेखन की प्रक्रिया *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* के माध्यम से जारी  *2200 से अधिक लेख/रचनायें* सोशल मीडिया पर निरंतरता बनाये हुए हैं।

*2-* कृपया कापी राइट का उल्लंघन न करें तथा रचनाओं को अधिक से अधिक अग्रसारित करें।

*3-* यदि आप सोशल मीडिया पर प्रसारित पूर्व की रचनाओं को पढ़ना चाहते हैं तो कृपया आप *अनंग साहब* के फेसबुक मित्र बनकर *मध्यम मार्ग समन्वय समिति* पेज पर जाकर पढ़ सकते हैं।

*4- सम्पर्क सूत्र~* 

मो. न. 9450155040